कब तलक फूल खिला सकती है
इक ग़ज़ल कितना कमा सकती है
ये तो हमने कभी सोचा ही नहीं
बुझदिली जान बचा सकती है
कोई आवाज उठाये तो ये रात
दीप क्या , धुप भी ला सकती है
भूल में जिल्ले -इलाही ना रहे
भीड़ पत्थर भी उठा सकती है
दरो- दीवार को मत ओढ़ के बैठ
मौत कमरे में भी आ सकती है