Friday, December 10, 2010

रिश्तो की दलदल

रिश्तों की दलदल से कैसे निकलेंगे
हर साज़िश के पीछे अपने निकलेंगे
चाँद सितारे गोद में आकर बैठ गये
सोचा ये था पहली बस से निकलेंगे
सब उम्मीदों के पीछे मायूसी है
तोड़ो ! ये बादाम भी कडवे निकलेंगे
मैंने रिश्ते ताक़ पे रखकर पूछ लिया
एक छत पर कितने परनाले निकलेंगे
जाने कब ये दौड़ थमेगी सांसो की
जाने कब पैरों से जूते निकलेंगे
हर कोने से तेरी खुशबु आएगी
हर संदूक में तेरे कपड़े निकलेंगे
अपने खून से इतनी तो उम्मीदे हैं
अपने बच्चे भीड़ से आगे निकलेंगे