जुल्फ़ें, लब, रुखसार उठाये फिरते हैं,
सब कल का अखब़ार उठाये फिरते हैं
दुनिया चाँद सितारे छुकर लौट आई
आप दिले - बीमार उठाये फिरते हैं
आँगन में टकसाल लगा ली लोगों ने
हम जैसे किरदार उठाये फिरते हैं
दीवाना तो चादर तान के सोता है
बोझ तेरे हुश्यार उठाये फिरते हैं
जिनके हाथ में गुडिया - गुड्डे होने थे
पैमाना परकार उठाये फिरते हैं
सब के कांधों पर है बोझ गुनाहों का
नेकी तो दो चार उठाये फिरते हैं
सब के कांधों पर है बोझ गुनाहों का
ReplyDeleteनेकी तो दो चार उठाये फिरते हैं
kaya baat hai shakeel sahab
सब के कांधों पर है बोझ गुनाहों का
ReplyDeleteनेकी तो दो चार उठाये फिरते हैं
bahut khub
ये हमारा सौभाग्य है कि
ReplyDeleteआज आपकी गजल पढ़ने को मिली
आपके कई सारे शेर मैं अपने पति से सुन चुकी हूँ
शायरों की महफ़िल अक्सर सजती है यहाँ
आपको ईद मुबारक
वल्लाह!! क्या खूब लिखते हैं ज़नाब
ReplyDeleteमन मोह लिया आपके लेखन ने
ईद मुबारक
शुभानअल्लाह,क्या बात है ।
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
वह!वह बहुत अच्छे .....
ReplyDeleteजिनके हाथ में गुडिया - गुड्डे होने थे
ReplyDeleteपैमाना परकार उठाये फिरते हैं
wah.... kya baat.... :)
bahut sundar rachna
ReplyDeletebahut khoob sundar rachna
ReplyDeletebahut khoob ................
ReplyDeleteइस सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
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