Friday, September 10, 2010

"जुल्फ़ें, लब, रुखसार उठाये फिरते हैं"

जुल्फ़ें, लब, रुखसार उठाये फिरते हैं,

सब कल का अखब़ार उठाये फिरते हैं


दुनिया चाँद सितारे छुकर लौट आई
आप दिले - बीमार उठाये फिरते हैं


आँगन में टकसाल लगा ली लोगों ने
हम जैसे किरदार उठाये फिरते हैं


दीवाना तो चादर तान के सोता है
बोझ तेरे हुश्यार उठाये फिरते हैं


जिनके हाथ में गुडिया - गुड्डे होने थे
पैमाना परकार उठाये फिरते हैं


सब के कांधों पर है बोझ गुनाहों का
नेकी तो दो चार उठाये फिरते हैं

11 comments:

  1. सब के कांधों पर है बोझ गुनाहों का
    नेकी तो दो चार उठाये फिरते हैं
    kaya baat hai shakeel sahab

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  2. सब के कांधों पर है बोझ गुनाहों का
    नेकी तो दो चार उठाये फिरते हैं
    bahut khub

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  3. ये हमारा सौभाग्य है कि
    आज आपकी गजल पढ़ने को मिली
    आपके कई सारे शेर मैं अपने पति से सुन चुकी हूँ
    शायरों की महफ़िल अक्सर सजती है यहाँ

    आपको ईद मुबारक

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  4. वल्लाह!! क्या खूब लिखते हैं ज़नाब
    मन मोह लिया आपके लेखन ने
    ईद मुबारक

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  5. शुभानअल्लाह,क्या बात है ।

    हिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
    कृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें

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  6. वह!वह बहुत अच्छे .....

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  7. जिनके हाथ में गुडिया - गुड्डे होने थे
    पैमाना परकार उठाये फिरते हैं
    wah.... kya baat.... :)

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  8. इस सुंदर से चिट्ठे के साथ हिंदी ब्‍लॉग जगत में आपका स्‍वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!

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